न्यूनतम वेतन का अधिकार

न्यूनतम वेतन का अधिकार

मजदूर की मेहनत का मोल है,
न्यूनतम वेतन से उसकी पहचान है।
हर पसीना बहे जो रोज़गार में,
उसका भी तो एक सम्मान है।

सालों की क़ानूनी लड़ाई का फल,
1948 में आया यह कानून महान।
सुनिश्चित हो हर कामगार का हक़,
मजदूरी की हो गरिमा, ये अरमान।

यह कानून कहता है एक सच्ची बात,
कम से कम मिले इतना वेतन,
कि जी सके वह इंसान,
करे अपने परिवार का पोषण।

पर सवाल यही उठता है बार-बार,
क्यों अभी भी वेतन में है तकरार?
न्यूनतम वेतन भी मिलना कठिन,
क्या ऐसे ही चलता रहेगा समाज़ का दिन?

कामगारों की आवाज़ उठानी होगी,
कानून के अमल में जान फूंकनी होगी।
न्यूनतम वेतन का हो जब सम्मान,
तभी सजेगा श्रम का सच्चा सम्मान।


This poem celebrates the essence of the Minimum Wages Act, 1948, which ensures that workers receive fair compensation for their labor. It also reflects the ongoing struggles and aspirations for proper implementation of this law.


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