अब सवाल उठते हैं सारे...

अब सवाल उठते हैं सारे...

काम के बोझ तले दब गई,
वो नारी, जिसने सपने सजाए थे।
हर सुबह की शुरुआत उम्मीद से,
पर तनाव ने उसके जीवन पर साये थे।

डेस्क की फाइलों में खोई,
चुपचाप अपने दर्द को रोई।
हँसी चेहरे पर थी मगर,
मन के अंदर आँधियाँ बोई।


सिस्टम ने देखा नहीं उसे,
सिर्फ नतीजे माँगे।
बिना रुके, बिना थमे,
उससे उसने जीवन माँगे।


घर और दफ्तर के बीच झूलती,
उसकी सांसें थम गईं।
काम के बोझ ने ले ली जान,
पर उसकी कहानी गुम गई।


अब सवाल उठते हैं सारे,
कहाँ थे वो जो सुनते नहीं थे?
एक और नारी चली गई,
काम के बोझ से थक गई थी।
- राहुल कुंवर (समय)


This poem dedicated to Sadaf Fatima from HDFC Bank and Anna Sebastian Perayil from EY India succumbed to excessive workloads




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